कल विश्व महिला दिवस था- महिलाओं को समर्पित एक दिन……… हर साल महिला दिवस के दिन यह ख्याल आता है कि आधी आबादी के लिये सिर्फ़ एक दिन ही क्यों? महिलायें बराबरी की हकदार हैं, सम्मान की हकदार हैं;सिर्फ़ एक दिन नहीं,पूरा साल उनकी आजादी और उन्मुक्ति का है। उनके त्याग को समर्पित है यह कविता-
नारी ऊर्जा है,शक्ति है,
नारी मन की अभिव्यक्ति है,
नारी समाज की दृष्टि है,
आनन्द स्रोत है, सृष्टि हैं,
नारी है सुख का मूर्त रूप,
है विश्वविधाता का स्वरूप,
लक्ष्मी के रूप में पूजित है,
फिर भी नारी अति शोषित हैं,
नारी ही जग का आदि सृजन,
उससे ही सम्भव है जीवन,
नारी है सभ्यता का विस्तार,
नारी है वसुधा का श्रृंगार,
नारी बल है, नारी विश्वास,
नारी मन मंदिर का प्रकाश,
नारी खुशियों की फुलवारी,
हा!फिर क्यों अबला है नारी?
शोणित से स्वर्ण बनाती है,
वह घर को स्वर्ग बनाती है,
प्रताड़ना की धधकती ज्वाला में,
वह ही क्यों झुलसी जाती है??
नारी ऊर्जा है,शक्ति है,
नारी मन की अभिव्यक्ति है,
नारी समाज की दृष्टि है,
आनन्द स्रोत है, सृष्टि हैं,
नारी है सुख का मूर्त रूप,
है विश्वविधाता का स्वरूप,
लक्ष्मी के रूप में पूजित है,
फिर भी नारी अति शोषित हैं,
नारी ही जग का आदि सृजन,
उससे ही सम्भव है जीवन,
नारी है सभ्यता का विस्तार,
नारी है वसुधा का श्रृंगार,
नारी बल है, नारी विश्वास,
नारी मन मंदिर का प्रकाश,
नारी खुशियों की फुलवारी,
हा!फिर क्यों अबला है नारी?
शोणित से स्वर्ण बनाती है,
वह घर को स्वर्ग बनाती है,
प्रताड़ना की धधकती ज्वाला में,
वह ही क्यों झुलसी जाती है??
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