आज तुम्हे मै हाथ पकड़ कर चलना सिखा रही हूँ,
बेटा इक दिन मेरी बैसाखी बन कर दिखलाना,
बिठा तुम्हें कंधे पर कैसे झूला झुला रही हूँ,
बेटा, इक दिन इन कंधों पर मेरा बोझ उठाना.
मालिन बन अपने उपवन का पुष्प सींचती हूँ मैं,
अपना सौरभ सदा सभी के जीवन में बिखराना,
बन कुम्हार मैं मिट्टी को साँचे में ढाल रही हूँ,
बेटा, तुम आगे अपना अस्तित्व भूल मत जाना,
हो खड़े स्वयं अपने पैरों पर चलना तो कुछ ऐसे,
रस्तों को भी पड़े तुम्हारे पाँव तले ही आना,
तभी साधना पूरी होगी होगी मेरे इस जीवन की,
चमक उठो सबकी आँखों में, सूरज बन दिखलाना,
नहीं माँगती मैं साड़ी, बँगला, गाड़ी, उपहार, भेंट,
पर जीवन के किसी मोड़ पर मुझे भूल मत जाना,
यही कामना है बेटे आकाश चूम लेना तुम,
अपनी माँ की घोर तपस्या ऐसे सफल बनाना.
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