जीवन में सफल होने के
लिए जरूरी है कि हम अपने नैतिक और पारिवारिक मूल्यों का पतन न होने दें. मेरी यह कविता
उन छात्रों को समर्पित है जो अपने भविष्य को आकार दे रहे हैं.
कुल कीर्ति ज्वाल बन
दमक दमक,
दुनिया को दीपित कर देना,
आशाओं के तुम दीप जला,
खुशियों से आँचल भर देना.
हाँ, मात पिता की अपेक्षाओं के
तुम प्रसून खिलने देना,
परिवार भवन है तुम स्तंभ,
न नींव जरा हिलने देना,
तुम सफलताओं के उच्च
शिखर की,
नित नव परिभाषा गढना,
प्रेरणा अपनी बन स्वयं, लक्ष्य को
बढना तो ऐसे बढना तो ऐसे बढना
कि डरे विपत्ति आने से,
तम भी झिझके छा जाने
से,
जय विजय गले का हार बने,
दृढता मन का श्रृंगार
बने,
जड को भू से जोडे रखना,
तुम हर पीडा को हर लेना,
कुल कीर्ति ज्वाल बन
दमक दमक,
दुनिया को दीपित कर देना.
No comments:
Post a Comment